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देश को आजादी मिले 68 साल पूरे हो रहे है,लेकिन आजादी को लेकर देश की जनता के जो सपने थे जो उम्मीदे थी क्या वो आज भी पूरी हो पाई है ,जवाब होगा नहीं। आजादी के बाद अनेको बदलाव जरूर देखने में आये हो लेकिन जिन बदलाओ के सपने हमारे स्वतंत्रता सेनानियों और महापुरषो ने देखे थे वो अब भी पूरा होने के इन्तजार में है.महात्मा गांधी ने जिस ग्राम स्वराज का स्वप्न देखा था वो आज भी एक स्वप्न ही है.छोटे शहर, बड़े शहर जरूर हो गए है,लेकिन गाव आज भी काफी मायनो में गाव के रूप में ही नजर आते है.गावो में सड़के जरूर बन गई है और उन पर महँगी गाड़िया भी दौड़ती है,लेकिन हल चलानेवाला किसान आज भी अपने खेतो से खोती हरियाली को देखकर आंसू बहाता है या उस बदहाल किसान की मौत पर उसका परिवार मातम मनाता है.देशभर में अन्नदाता की लगातार आत्महत्याएं सत्ता के सिहासन पर बैठनेवालो को जरा सा भी विचलित नहीं करती।विपक्षी दल आते है ,दिलासा देते है और चले जाते है.कभी इनकी सत्ता, कभी उनकी सत्ता लेकिन हालात जस के तस बने रहते है.उस देश का सम्पूर्ण विकास कैसे हो सकता है जहा की कृषि व्यवस्था उन्नत होने की बजाय ऑक्सीजन पर निर्भर हो गई हो .वही भूमि अधिग्रहण कानून के नाम पर किसानो को उनकी माटी से दूर किया जा रहा है। कई सरकारे आई और गई लेकिन देश को बदलने की जिस उम्मीद के साथ मोदी सरकार को जनता ने बहुमत दिया था क्या उस जन का हित साकार हो पा रहा है ?या सिर्फ मन की बात और सड़को की सफाई के नाम पर देश की जनता को बहलाया जा रहा है.
बड़े ही जोरदार तरीके से भारी बहुमत के साथ सत्ता के सिंहासन पर सवार हुई मोदी सरकार को आये एक साल से ज्यादा होने आ गया है और अब ये सवाल हर तरफ से उठने लगा है की क्या मोदी सरकार उस सुशासन से दुर नजर आ रही है जिसके उसने सत्ता में आने से पहले वादे किये थे.क्या किसानो के हालात सुधर गए है ?क्या गरीबो को वो लाभ हुए जिनके वादे हुए ?युवाओ को क्या नए रोजगार मिले ?क्या अब भ्रष्टाचार खत्म हो गया है ?क्या काला धन वापस आ गया है ?क्या महंगाई खत्म हो गई ?इस तरह के अनेको सवाल विपक्ष भले ही सरकार से समय समय पर करता रहे और इन मुद्दो को लेकर आंदोलन भी करता नजर आ जाये ,लेकिन इन सवालो के जवाब इस देश की जनता को भी चाहिए जिसने इनके जवाब की कीमत पर मोदी सरकार की ताजपोशी की थी.लेकिन ये सरकार भी उसी साइलेंट मोड़ को अपना रही है जिसका आरोप उसने पिछली सरकार पर लगाया था.जहा तक विकास की बात है तो कुछ पुरानी कल्याणकारी योजनाओ के नाम बदल गए है तो कुछ नई योजनाये शुरू भी की गई है,लेकिन सवाल ये है की इन योजनाओ का फायदा किस हद तक लाभार्थियों को मिल पा रहा है ?
बात की जाए भ्रष्टाचार की तो रंग जरूर बदल गए है,लेकिन रूप वही है.जिस भ्रष्टाचार को लेकर पिछली कांग्रेस सरकार को कोसते ना थकनेवाली भाजपा आज अपनी सरकार पर लगे आरोपों को लेकर ढंग से सफाई तक नहीं दे पा रही है.सालो से अनुशासन का दम भरनेवाली भाजपा देश के सबसे दर्दनाक व्यापम घोटाले को लेकर नैतिक जिम्मेदारी लेने से तक बच रही है.कई मौतों से जुड़ा व्यापम भाजपा के गले की फांस भले ही बन गया हो,लेकिन इससे कई लोगो का जरूर दम घुट रहा है.जो पता नहीं किस तरह बड़े ही रहस्यमयी तरीके से मौत की आगोश में जा रहे है.लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह नैतिकता के नाम पर पद नहीं गवाना चाहते।एक ओर सुषमा स्वराज तो दुसरी ओर वसुंधरा राजे पर भी गंभीर आरोपों के बावजूद प्रधानमंत्री मौन धारण किये हुए है.इनसे पहलेवाले प्रधानमंत्री को मौनीबाबा कहते नहीं थकनेवाले सत्तासीन दल आज क्या जवाब देंगे।इन दिनों विपक्ष को भी भरपूर अवसर मिला है अपने तेवर दिखने का,लेकिन जिस तरह के मुद्दो को लेकर संसद ठप्प है उससे क्या देश का सम्पूर्ण विकास संभव हो पायेगा।जिस सुशासन के दावे किये गए वो पुरे हो पाएंगे या सूचना तंत्र के इस युग में देश की जनता इसी तरह बहलाई जाएगी। क्या हमेशा यही इन्तजार रहेगा की कोई तो आएगा इस देश को उन्नती की दिशा में ले जानेवाला,देश को सोने की चिड़िया बनानेवाला ………
—सूर्य प्रकाश तिवारी
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