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भक्ति का अपमान बंद हो
हम सब अपने आपको किसी ना किसी भगवान का बहोत बड़ा भक्त मानते है,लेकिन क्या हमारी भक्ति सच्ची है?इस सवाल का जवाब हर कोई हा में देगा,लेकिन अगर हम गणेश उत्सव पर नजर डाले तो हमारी भक्ति की पोल खुल जाएगी।गणेश जी की पूजा प्राय हर घर में होती है और दस दिनों का उत्सव भी कई शहरो में मनाया जाता है,लेकिन क्या कभी हमने सोचा की इस उत्सव में हम अपनी भक्ति का ही नहीं गणेश जी का भी अपमान करते है.लाखो रूपये खर्च करके बड़ी बड़ी मुर्तिया स्थापित तो की जाती है ,लेकिन विसर्जन के बाद उनकी क्या हालत होती है ये विसर्जन के दूसरे दिन हम उन तालाबों और नदियों के पास जाकर देख सकते है और इस विसर्जन के तरीके से क्या परिणाम होते है इस पर भी गौर करने की जरुरत है. गणेश चतुर्थी किस तरह मनाई जानी चाहिए और हम आज तक किस तरह मना रहे है,इसको लेकर सभी इस मंच पर अपनी अमूल्य राय खुलकर व्यक्त करे।इसमें कुछ सुझाव मै आपके समक्ष पेश कर रहा हु ,जिन्हें भी सही लगे उसे अपने परिचितों को अवश्य बताये।
1 -प्लास्टर ऑफ़ पेरिस से बनी रंग बिरंगी मूर्तियों के बजाय हर घर में मिट्टी से बनी मुर्तिया स्थापित की जाने चाहिए,ताकि हमारे जल स्त्रोत नदिया हो या तालाब उन्हें प्रदुषण से बचाया जा सके।
2 -हर गली में गणेश मंडप स्थापित करने के बजाय एक कालनी में एक मंडप और गाँवों में एक गाव एक गणपति की शुरवात हो।
3 -ऐसा करने से जिन पैसो की बचत होगी उससे गणेश चतुर्थी के दस दिन तक गरीबो को अन्नदान ,वस्त्रदान के साथ साथ उन बच्चो की पढाई की जिम्मेदारी भी गणेश मंडल उठा सकते है,जो पढने में आर्थिक रूप से संपन्न नहीं है और बाल मजदूरी में फंसे है।
4 -हम बड़े जोरशोर से दस दिन पूजा अर्चना करने के बाद गणेश जी की प्रतिमा विसर्जित करते है,लेकिन प्लास्टर ऑफ़ पेरिस से बनी ये मुर्तिया विसर्जन के दुसरे दिन किस हालत में होती है,कई लोग जानते है और जो नहीं जानते वो इस मंच में दी जा रही फोटो देख सकते है।नदी और तालाबो में किनारों पर विसर्जित की गई इन मूर्तियों को तोड़कर उनमे से सलाखे निकालकर बेंची जाती है।मूर्तियों के लिए उपयोग में लाये गए रंग से जल के ये स्त्रोत किस कदर प्रदूषित हो रहे है ये हम सब जानकर अनजान बन जाते है।इसलिए सभी भक्तो से मेरी ये अपील है की मिट्टी से बनी मूर्तियों को स्थापित किये जाने से प्रदुषण भी नहीं होगा और विसर्जन के बाद इन मूर्तियों का इस कदर अपमान भी नहीं होगा।
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