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औपचारिकता ही है हिन्दी पखवाडा मनाना “contest “

हम हिन्दुस्तानी
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हिन्दी दिवस पर पखवाडा आयोजित करने का कोई औचित्य नहीं है,बल्कि पखवाडा आयोजित करना हिन्दी को अपनाने की औपचारिकता मात्र रह गई है.निजी संस्थान हो या सरकारी संस्थान सालभर अपने दैनिक कार्यो में हिन्दी का उपयोग करने के बजाय सिर्फ हिन्दी दिवस पर पखवाड़ो का आयोजन कर ये दर्शाने की कोशिश की जाती है की हिन्दी का प्रचार प्रसार बड़े जोरोशोर से किया जा रहा है.इसके लिए बाकायदा विशेष रूप से निधि आबंटित करने के साथ साथ अखबारों और टी वी चैनलो में विज्ञापन जारी कर हिन्दी को अपनाने का दिखावा किया जाता है.निजी उपक्रमों को बाजु में रख दिया जाए तो सरकारी उपक्रमों में भी राष्ट्रभाषा की स्थिति बड़ी ही उपेक्षापूर्ण है.सरकारी कार्यालयों में सभी दैनिक कार्य अंग्रेजी में इस तरह होते है,जैसे की वो राष्ट्रभाषा हो,जबकि हिन्दी की स्थिति द्वितीय भाषा की रह गई है.इन सरकारी कार्यालयों में राजभाषा विभाग को विशेष रूप से इसीलिए रखा जाता है,ताकि आवश्यक समझे जानेवाले दस्तावेजो को ही भाषांतरित किया जा सके.यही नहीं इन कार्यालयों में किसी विदेशी भाषा की तरह प्रतिदिन हिन्दी का एक शब्द सिखने के लिए बोर्ड पर लिखा जाता है.इसका साफ़ साफ़ अर्थ ये दिखाई देता है की सरकारी विभागों में ऐसे कर्मचारियों की नियुक्ति की जाती है,जिन्हें देश की राष्ट्रभाषा तक नहीं आती,जोकि हमारी राष्ट्रभाषा की दुर्दशा को दर्शाने के लिए काफी है.ऐसे में ये सवाल लाजमी है की क्या इन हालातो में हिन्दी को राजभाषा कहा जा सकता है ?क्या हम आज भी विदेशी वस्तु ही नहीं विदेशी भाषा के भी गुलाम नहीं है ?
अगर उक्त सवालो पर गौर किया जाये तो हमें आजादी कहा मिली है और क्यों हमने आजादी के लिए इतने संघर्ष किये ?अंग्रेजो से अगर आजादी पानी ही थी तो अंग्रेजी के गुलाम क्यों बन गए.क्यों स्वदेशी के नारे लगाये गए और क्यों हमें स्वदेशी भाषा से लगाव नहीं है और क्यों हमें इस भाषा को अपनाने से शर्म आती है ?क्यों हम गर्व के साथ हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा का सम्मान नहीं देते ?इन सवालो को लेकर कई विद्वान ये तर्क दे सकते है की हिन्दी का अस्तित्व कायम है और उसकी शान बरकरार है,लेकिन ये अर्धसत्य है.जिस व्यापकता से हर जगह अंग्रेजी का ही उपयोग हो रहा है और हिन्दी को अस्वीकार किया जा रहा है तो ऐसे में हिन्दी कहा पर है ?आई ए एस की परीक्षा हो या कोई अन्य बड़ी परिक्षाए अंग्रेजी में ही ली जाती है.हिन्दी माध्यम में पढाई करना और कराना शर्म की बात समझी जाती है.जिस प्रमाण में अंग्रेजी माध्यम के शिक्षण संस्थान है,उसी प्रमाण में हिन्दी दिखाई तक नहीं देती तो ऐसे में निजी उपक्रम हो या सरकारी उपक्रम हिन्दी का उपयोग किस प्रकार होगा.बल्कि 15 अगस्त को जिस तरह आजादी का दिन मनाया जाता है,उसी तरह हिन्दी दिवस पर हिन्दी पखवाडा मनाकर हिन्दी को अपनाने की औपचारिकता मनाई जा रही है और ये सिलसिला तब तक जारी रहेगा जब तक प्रशासनिक स्तर पर हिन्दी के उपयोग को कड़ाई से अमल में लाने के उपाय नहीं अपनाये जाते.यहाँ तक की कई विदेशी इस भाषा को हमारी संस्कृति को सिखने हिंदुस्तान आ रहे है और हम अपनी ही भाषा को पराया कर रहे है.जिस तरह जापान और चीन में उनकी मातृभाषा को बड़े ही गर्व के साथ अपनाकर वे देश उन्नती की राह पर आगे बढ़ रहे है,उस तरह हम हिंदुस्तानी क्यों नहीं अपनी हिन्दी को वो पहचान दिलाने के लिए कमर नहीं कसते,जिसकी वो हकदार है.हर हिंदुस्तानी का ये कर्तव्य है की इस भाषा को औपचारिकता की हदों से निकालकर गर्व के साथ पूर्ण रूप से अपनाये।

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