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सिग्नल पर वो घूम रही थी
तिरंगा लेकर दौड़ रही थी
नन्ही सी वो बोल रही थी
आजादी आई, आजादी आई
दस रूपये में आजादी, ले लो मेरे भाई
मैंने उसे बुलाया,दस का नोट थमाया
और उससे आजादी ले ली
लेकिन उठ गया एक सवाल
देश में मच गया बवाल
सब एकदूजे से पूछ रहे है
क्या तुमने आजादी छिनी
क्या उसने आजादी छिनी
ये सच्चाई किसी ने नहीं मानी
जानकर सब अनजान थे
बस वही एक नादान थे
जो आजादी की शान थे
लेकिन नहीं थे जानते
आजादी यु गुमराह हो जाएगी
उन्नती सपनो में रह जायेगी
नेताजी ने भाषण सुनाया
एक ही नारा लगाया
देश में क्या कोई गुलाम है
भीड़ में से आवाज आई
हम भी आजाद है,वो भी आजाद है
उसे भूखे रहने की आजादी है
हमें भूख मिटाने की आजादी है
नित नए कपडे हमारे पास है
उसे कुछ कपड़ो की आस है
कोई आशियाना ना उसके पास है
जीने का जज्बा उसका खास है
गरीबी का उसे कोई गम नहीं
लेकिन आँखों में उनकी शरम नहीं
जिन्होंने इनकी आजादी को छिना है
अब चुप नहीं रहना है
सूरज का यही कहना है
सबको रोटी,कपडा और
मकान मिले,वही सपनो
का सुनहरा हिन्दुस्तान मिले
जय हिन्द
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