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पाखंडी मीड़िया-गुमराह समाज

हम हिन्दुस्तानी
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एक समय ऐसा था,जब मीड़िया छोटे से छोटे बाबाओ और तथाकथित तांत्रिको के किस्से बढ़ा चढ़ाकर पेश किया करता था.इन बाबाओ को माननेवाले लोगो को अन्धविश्वासो से बाहर निकलने की दुहाई दिया करता था.इन तांत्रिको और बाबाओ को पाखंडी बताकर इनकी पोल खोलने के किस्से बड़े ही मसाले लगाकर दिखाए जाते थे.मगर आज की तस्वीर ये दिखा रही है की समाज को जागरूक होने की बात करनेवाला मीड़िया खुद इन अन्धविश्वासो में जकड़कर क्या पाखंडी हो गया है ? इस सवाल का जवाब देखना है तो सुबह सुबह कोई भी क्षेत्रीय या फिर राष्ट्रिय न्यूज़ चैनल खोलकर दो मिनट देख लीजिये,आप खुद समझ जायेंगे की रुपया कमाने के लिए किस तरह कुछ लोग भगवान् बन बैठे है.अगर वो भगवान है या फिर लोगो का दुःख दूर करना चाहते है तो उन्हें रुपयों की क्या आवश्यकता है.ये व्यापारी बाबा अपने उटपटांग तरीके बताते है.जो की इन न्यूज़ चैनलों में इनके विशेष प्रायोजित कार्यक्रमों में दिखाया जाता है.इन कार्यक्रमों के अंत में ये बाबा लोग बाकायदा अपना बैंक खाता नंबर देकर उसमे रूपये जमा करने और उनसे मिलने का समय तय करने के लिए कहा जाता है.विज्ञापन के राजस्व को बढ़ाने के लिए ऐसे पाखण्ड को बढ़ावा देकर क्या मीड़िया समाज को गुमराह नहीं कर रहा है.उलटे मीडिया की ये सामाजिक जिम्मेदारी है की वो बाबा बन बैठे ऐसे व्यापारियों का पर्दाफाश करे.
सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक विषय ये है की इस बढ़ते पाखण्ड में पढ़े लिखे लोग शामिल दिखाई देते है.पुराने रीती रिवाजो को ठुकराकर हाईटेक युग में जीने का दावा करनेवाला आज का शिक्षित समाज क्या उन ग्रामीणों के समान ही नहीं है,जो शिक्षा के अभाव में ऐसे बाबाओ के चक्कर में फंस जाते है.थोडा बहोत रुपया लेकर आजीविका चलानेवाले छोटे बाबाओ का पर्दाफाश तो इस तरह दिखाया जाता है,जैसे उन्होंने कोई २ जी घोटाला कर दिया हो.लेकिन उन बाबाओ से मीड़िया बड़े ही अच्छे रिश्ते बनाये रखता है,जो लाखो रूपये कमाते है और उनमे से कुछ हिस्सा विज्ञापन के रूप में न्यूज़ चैनलों और मनोरंजन चैनलों को दिया जाता है.एक बाबा को ये उपाय बताते हुए सुनकर अफ़सोस और आश्चर्य होता है,जिसमे वो कहता है की फलाना भगवान ने तुम्हारे काम रोक दिए है,उनकी भक्ति किया करो.नाश्ते में लाल चटनी की जगह हरी चटनी खाने पर कार्य में सफलता मिलेगी.इन उपायों को पढ़े लिखे लोग सहर्ष स्वीकारते है.क्या किसी ने कभी ये सुना है की भगवान् काम बिगाड़ते है या फिर रोकते है ?इस बात को वह इंसान तो मान नहीं सकता जो भगवान में विश्वास रखता है.वो अलग बात है की कुछ लोग आस्तिक और कुछ लोग नास्तिक होते है.मगर हिन्दू धर्म में विश्वास रखनेवाले लोग ये कैसे मान सकते है की किसी भगवान के दर्शन ना करने पर काम बिगड़ जायेंगे.यही नहीं कुछ चैनलों पर ऐसे बाबाओ के प्रवचन तक दिखाए जाते है,जो रासलीला करते पकडे गए थे.
क्या हमारे देश में समस्याओ की कमी है.आज भी इस देश में भुखमरी से मौते होती है.विभिन्न समस्याओ से त्रस्त होकर हर दिन देश में कई लोग आत्महत्या करते है.लाखो लोगो को रहने के लिए घर नहीं है.पढने के बावजूद लाखो लोग बेरोजगार है.क्या इन मुद्दों को उठाना मीडिया की जिम्मेदारी नहीं है.सिर्फ टी.आर.पी की होड़ में एक दुसरे से बढ़कर मसालेदार कार्यक्रम दिखाना ही एकसूत्रीय कार्यक्रम रह गया है.जब चौथा स्तम्भ कहा जानेवाला मीडिया ही ऐसा होगा तो इस समाज को गुमराह होने से कौन बचा सकता है……….

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