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प्रेम समर्पण बने जूनून नहीं–“valentine contest “

हम हिन्दुस्तानी
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rose

“ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय “यह बात तो हर किसी ने सुनी है,लेकिन उसका सही अर्थ यही है की प्रेम को समझकर जो उसे निभाता है वही सच्चा प्रेमी कहलाता है.मगर वक्त के साथ प्रेम के मायने भी बदलते जा रहे है.प्रेम कैसा होना चाहिए और कैसा नहीं होना चाहिए,यह मेरे इस लेख में दिए दो प्रसंगों को पढ़कर जाना जा सकता है.प्रेम समर्पण की वो भावना है जिसे अपनानेवाला प्रेम के उद्देश्य को सार्थक करता है.प्रेम कोई जूनून नहीं है जिसमे फसकर वर्तमान और भविष्य को ही मिटा दिया जाये.
युवा अवस्था उस कच्चे घड़े की तरह होती है,जिसे जिस आकर में ढाला जाये उसी आकर में वह पूर्ण रूप धारण करता है.लेकिन सवाल ये है की उसे आकर देनेवाले कुम्हार की भूमिका कौन निभाएगा ? एक ओर माता-पिता अपने अपने कामो में इस कदर व्यस्त हो गए है की वे अपने बच्चो को उच्च शिक्षा के लिए दुसरे शहरो में भेजकर यह समझते है की उनकी जिम्मेदारी पूरी हो गयी है तो वही दूसरी ओर गुरु की भूमिका निभानेवाले शिक्षक सिर्फ अपनी नौकरी पूरी कर रहे है और कई मामलो में तो वह भी गुमराह करने में छात्रों से दो कदम आगे रह रहे है.आधुनिक माहौल का प्रभाव कहिये या हमारी फिल्मो का गहरा असर,रील लाइफ आज की रियल लाइफ में इस हद तक समां गई है की युवाओ का पहला कदम कालेज में होता है तो दूसरा कदम प्यार की ओर,पहले दोस्ती फिर प्यार,यही आज की युवा पीढ़ी का फैशन बन गया है.इसमें सिर्फ लडको को दोषी नहीं ठहराया जा सकता,लड़का हो या लड़की अगर उसका कोई बायफ्रेंड और गर्लफ्रेंड न हो तो इसे स्टेटस सिम्बल नहीं माना जाता.और तो और यह फैशन स्कूल के बच्चो तक पहुँच गया है
युवा अवस्था के इसी आकर्षण ने प्यार का ऐसा रूप ले लिया है की परिपक्वता के अभाव में यह स्थिति अब दीवानगी में तब्दील हो गयी है,जो की इस कदर जानलेवा बन गयी है की इन हालातो के चलते आंध्र प्रदेश में पिछले कुछ समय से ऐसी घटनाये हो रही है जिन्हें देखकर रोंगटे खड़े हो जाते है………हैदराबाद की इंजीनियरिंग की छात्रा दिव्या को सिर्फ इसलिए मौत के घाट उतार दिया गया की उसकी दोस्ती दुसरे लड़के से हो गई.पहले शेखर और दिव्या में अच्छी दोस्ती हुआ करती थी जो बाद में प्यार में बदल गई.अमीर माता-पिता की अकेली संतान होने के कारण शेखर हैदराबाद में शानो शौकत की जिन्दगी जिया करता था और उसके अभिभावक नौकरी के खातिर दुसरे शहर में रह रहे थे.लेकिन शेखर को मिली ये आज़ादी और इस युवा अवस्था में मार्गदर्शन की कमी के चलते उसकी मानसिकता इतनी परिपक्व नहीं बन सकी की ये समझ सके की प्यार क्या होता है.महज युवा अवस्था का आकर्षण क्या पूरी जिन्दगी टिक सकता है ?इस सवाल का जवाब आपको उन जोड़ो से मिल सकता है,जो प्रेम विवाह के कुछ महीनो बाद ही तलाक के लिए अदालतों के चक्कर लगा रहे है.मै ये नहीं कहता की प्रेम विवाह पूरी तरह विफल होते है.आपसी समझ और परिपक्वता के साथ सफल होनेवाले जोड़ो की भी हमें कई मिसाले मिल जाएगी.मगर प्यार को ऐसी दीवानगी में नहीं धकेलना चाहिए की वो भविष्य को अँधेरी खाई में धकेल दे.उच्च शिक्षा लेनेवाले युवाओ को अपने जोशीले कदम अपने उज्वल भविष्य की ओर बढ़ाने चाहिए,न की दोस्ती को प्यार का नाम देकर इसे एक खेल समझे.प्यार का अर्थ समझे बिना इसे एक फैशन की तरह अपनाना किसी घातक कदम से कम नहीं है.इसके नतीजे भी हम साफ देख सकते है.दिव्या की हत्या करनेवाला शेखर आज जेल की सलाखों के पीछे है.तो दिसम्बर२००८ में एसिड हमले में मारी गई स्वप्निका का हत्यारा पुलिस मुठभेड़ में मारा गया.२००४ में भी मनोहर नामक छात्र ने अपनी सहपाठी श्रीलक्ष्मी को क्लासरूम में मार डाला और आज जेल में सजा भुगत रहा है.
इस प्रसंग में जो कहानी बताने जा रहा हु वह कोई काल्पनिक कहानी नहीं है और न ही कोई फ़िल्मी कहानी,बल्कि हैदराबाद की घटी एक सत्य घटना है,जिसने उन लोगो के लिए एक सन्देश दिया है जो प्यार को सिर्फ खेल या जूनून समझकर एक दुसरे की जिन्दगिया बर्बाद करते है..लेकिन प्यार क्या होता है और जिसे प्यार करते है उसके प्रति कैसा समर्पण चाहिए ये साबित कर दिखाया हैदराबाद की इस महिला ने,वो अपने पति को इस हद तक चाहती थी की उसके बिना जिन्दगी की कल्पना नहीं कर सकती थी.लेकिन उसे उस जिन्दगी ने ही ऐसा धोखा दिया की वो इस दुनिया में कुछ ही दिनों की मेहमान बन गई.इस महिला को एक ५ साल की बच्ची भी थी.एक दिन जब उसे पता चला की उसे जानलेवा कैंसर की बिमारी है और ज्यादा दिन जी नहीं सकती तब कुछ देर के लिए तो उसके पाओ तले जमीन खिसक गई.लेकिन किसी तरह अपने आपको संभाला और अपने पति के भविष्य को जीतेजी एक नई डोर में बाँधने का फैसला किया.ताकि उसका पति उसकी मौत के बाद गम में अपने और बच्चे के भविष्य को अँधेरे में ना धकेले.उसने पति की दूसरी शादी के लिए पुरे परिवार को मनाया.पति भी पत्नी की आखरी इच्छा को मना नहीं कर पाया.लेकिन परिवार को ये पता नहीं था की आखरी सांस आने के पहले ही वो मौत को गले लगा लेगी.पति की शादी के चार दिन के भीतर ही खुद को आग लगाकर आत्महत्या कर ली.
इस घटना के बारे में जिसने भी सुना सन्न रह गया.आमतौर पर कई ऐसी घटनाये होती है,जिसमे पत्नी की मौत के बाद लोग दूसरी शादी करने में देर नहीं लगाते,लेकिन ये ऐसा मामला था जिसमे पत्नी को पता था की उसका पति उसे इतना चाहता है की उसकी जगह किसी दूसरी महिला को नहीं देगा ऐसे में पूरी जिन्दगी बिताना काफी कठिन हो जायेगा.इसे ध्यान में रखकर ही पत्नी ने पति की शादी जीतेजी करा दी और इस दुनिया को अलविदा कह दिया.इस सच्ची कहानी को देखने के बाद मेरा तो बस यही मानना है की पति और पत्नी के रिश्ते में प्यार और समर्पण की भावना होनी चाहिए.जिन्दगी देखा जाये तो बहोत ही छोटी है और उसके हर पल को प्यार से भर देना चाहिए.

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