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ऐसा नहीं की सिर्फ अनजाने लड़की और लड़के के बीच होनेवाला आकर्षण व प्रेम ही असली प्यार होता है. ऐसा भी जरुरी नहीं की प्रेम करने के बाद ही शादी हो तो वो रिश्ता अटूट होता है.सिर्फ शरीर के आकर्षण को भी प्रेम कहना सही नहीं है.जो की आजकल सही माना जाता है.लेकिन इस राह पर चलनेवालो का मोहभंग भी जल्दी ही होता है.प्रेम.प्यार,मोहब्बत,चाहत,आशिकी,इश्क जैसे चाहे जिस नाम से इस अहसास को पुकारलो इसकी सच्चाई अंतर आत्मा में होती है.वही से पैदा होनेवाला या जागनेवाला प्यार ही जिंदगीभर तक साथ निभा सकता है.इस बात का अहसास हमें हमारी अंतर आत्मा इस तरह कराती है की हमें तब साफ़ साफ़ दिखाई देने लगता है की असली प्यार तो यही है.जबकि उस अहसास से पहले हमारी सोंच कही और भटक रही होती है.लेकिन मैंने तो हमेशा से यही सोंच रखा था की जिसे भी जीवन साथी के रूप में चुनुँगा उसे इतना चाहूँगा की वो जिन्दगी में आनेवाली छोटी सी छोटी मुश्किल को भी पल भर में भुला दे.इस अहसास को लेकर मै आज आप सब को मेरे जीवन की उस घटना के बारे में बताने जा रहा हु.जिसने मुझे इस कदर हिला डाला की जब भी मै इस बारे में किसी को बताता हु मेरा रोम रोम कांप उठता है.इस घटना के बाद तो मेरा प्यार इतना गहरा हो गया की मै इससे बिछड़ने तक की कल्पना से आँखे नाम हो जाती है.
बात उन दिनों की है जब मै शादी के एक साल बाद नानी ससुर की मौत होने पर पत्नी के साथ जोधपुर गया था.जब वापसी में आना था तब ट्रेन का कोई टिकट ना मिलने से मुझे एक ट्रेवल्स में दिल्ली की बुकिंग करनी पड़ी. शाम के वक्त ये सफ़र शुरू हुआ.हम दोनों इधर उधर की बाते कर रहे थे.बातो बातो में पत्नी ने कहा की आप मुझे ज्यादा प्यार नहीं करते.मैंने कहा करता हु,लेकिन कम या ज्यादा ये कोई कैसे तय कर सकता है.मगर कितना करता हु इसका अहसास तुम्हे एक दिन जरुर होगा.इस दौरान ट्रेवल्स की बस पेट्रोल के लिए हाइवे के एक पेट्रोल बंक पर रुकी.पत्नी को नींद आ रही थी.मैंने उससे कहा मै नीचे जाकर पानी लेकर आता हु. उतरते समय ड्राइवर को बताया की मै अभी आता हु.नीचे उतरकर थोड़ी ही दूर एक दूकान से पानी ले ही रहा था की बस जाने लगी.मैंने आवाज लगाईं मगर ड्राइवर ने नहीं सुनी,पीछे दौड़ना शुरू किया,हाफ्ते हाफ्ते आवाजे दे रहा था.लेकिन बस की गति इतनी थी की वो देखते ही देखते आँखों से ओझल हो गई.चारो तरफ अँधेरा और हाइवे पर दौडती गाडियों के सिवा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था.बस का पीछा करने के लिए दूसरी गाडियों को हाथ दिखाकर रोकने की कोशिश करने लगा मगर कोई भी मेरी मदत नहीं कर रहा था.दौड़ते दौड़ते और आगे पहुंचा तो उसी नाम की और एक ट्रेवल्स मेरे सामने से जाने लगी.उसके पीछे दौड़ने लगा.मगर हाफ़ने के कारण गला इतना सुख चूका था की गले से कोई आवाज तक नहीं निकल रही थी.ये बस भी आँखों से दूर चली गई.चलते चलते आखिर एक ढाबे में पहुँच गया,वहा से पुलिस को मदत के लिए फोन मिलाने की कोशिश करने लगा मगर फोन भी नहीं मिल रहा था.ढाबे का मालिक पूछ रहा था की क्या हुआ है मगर मुह से एक शब्द तक नहीं निकल पा रहा था.
क्या करू,कुछ समझ में नहीं आ रहा था.फिर से हाइवे पर पहुँच कर गाड़िया रोकने का प्रसाय करने लगा.मगर कोई गाड़ी नहीं रुक रही थी.फिर सड़क के बीच आकर मैंने दोनों हाथ उठाकर सामने से आ रही एक ट्रेवल्स को रोकने की कोशिश की,इस बार किस्मत ने साथ दिया और उसने गाड़ी रोक ली.मैंने उससे दिल्ली तक छोड़ने के लिए कहा.वो राजी हो गया.ड्राइवर के पास बैठकर हाफ रहा था.उसने पिने को पानी दिया.फिर उसे मैंने रुक रुक कर सारी बात बताई और रोने लगा,वो मुझे हिम्मत दे रहा था की घबराओ मत सब ठीक हो जायेगा.वही पर माँ शेरावाली की फोटो लगी थी.जिसे हाथ जोड़कर मै रोते हुए प्रार्थना किये जा रहा था की माँ मै उसे बहोत चाहता हु.मुझे एक बार मिला दे.आँखों में आसू रुक नहीं रहे थे.अभी जब ये बात आप सब को बता रहा हु तो मेरी धड़कने फिर से तेज हो गई.दिमाग में कई उलटे विचार आ रहे थे की उसके बिना मै कैसे जी सकता हु.रास्ते में जो जांच चौकिया आ रही थी सब से पूछ रहा था की कोई इस नंबर की ट्रेवल्स यहाँ से गुजरी है.मगर कुछ पता नहीं चल रहा था.पास में मोबाइल था मगर वो भी काम नहीं कर रहा था और पत्नी के पास तो कोई मोबाइल नहीं था.फिर किसे मिलाऊ और क्या बताऊ.सुबह के ५-६ के बीच ट्रेवल्स वहा पहुंची जहा हम उतरनेवाले थे.
मैंने ड्राइवर का शुक्रिया अदा किया तो उसने अपना नंबर देकर कहा की पत्नी मिले तो मुझे बताना.नीचे उतर कर देखा तो सामने पुलिस स्टेशन था.सोंचा जाकर रिपोर्ट लिखाऊ.या पहले फोन करके परिवारवालों को बताऊ.मगर बता दू तो सब घबरा जायेंगे.इस विचार को छोड़ मै वहा बस स्टॉप पर खड़े लोगो से पूछने लगा,लेकिन कोई साफ़ जवाब नहीं मिल रहा था.इतने में वहा पुलिस की मोबाइल गाड़ी दिखाई दी तो जाकर उन्हें पूरी घटना बताई.तब उन लोगो ने वायरलेस पर निर्देश दिए की दिल्ली से हरिद्वार जानेवाली गाडियों को चेक किया जाये.इसी दौरान मुझे सामने एक बस रूकती दिखाई दी तो मै उस तरफ पहुंचा ही था की वो वहा से रवाना हो गई.वो वही ट्रेवल्स थी.वही से मैंने पुलिसवालों को इशारा किया तो उन्होंने सायरन बजाते हुए बस के पीछे गाड़ी लगा दी और ओवरटेक कर उसे रोक दिया.मैंने दौड़ते दौड़ते वो दुरी तय की और पास में पहुंचकर खिड़की की तरफ देखा तो थोड़ी तसल्ली हुई,पुलिसवालों ने पत्नी का नाम लेकर बाहर से आवाज लगाई,मै भी भीतर पहुँच गया.सभी यात्री मेरी तरफ देख रहे थे की आखिर क्या हो रहा है और ये बस ऐसे क्यों रोकी गई.पत्नी ने मुझे देखकर कहा आप कहा थे और ये क्या हो रहा है.मै लगातार रोये जा रहा था.पुलिसवालों ने ड्राइवर को डांट लगाई और फिर उनका शुक्रिया अदा किया तो वो वहा से रवाना हो गए. जब मैंने पूरी बात बताई तो सभी यात्री ये कह रहे थे की ये तो बिछड़ो का मिलन हो गया.इस सारी कहानी में एक बात अच्छी रही की नींद में रहने से मेरी पत्नी को मुझ से बिछड़ने का पता ही नहीं चला.लेकिन जब पूरी घटना सुनी तो उसके भी होश उड़ गए और ये अहसास हुआ की मै उसे किस हद तक चाहता हु.वहा से घर पहुँचने तक मै उसे देखे जा रहा था और आँखों से आसू थम नहीं रहे थे.घर पहुंचकर जब पूरी कहानी बताई तो सब की आँखों में आसू थे.लेकिन भगवान का भी शुक्रिया अदा कर रहे थे की एक बड़ी अनहोनी टल गई. फिर मैंने उस ड्राइवर को फोन करके शुक्रिया अदा किया,जिसने मेरी दिल्ली पहुँचने के लिए मदत की.
इस कहानी को बताने के पीछे मेरा उद्देश्य यही था की प्यार जब हमारे पास होता है तो उसे पहचान लेना चाहिए.हालांकि मेरी अंतर आत्मा ने मुझे पहले ही इसकी पहचान करा दी थी और इस घटना के बाद ये अहसास और भी गहरा हो गया.लेकिन उन लोगो को प्यार की कद्र करनी चाहिए जो छोटी छोटी बातो को लेकर अलग हो जाते है.प्रेम विवाह हो या परिवार द्वारा तय विवाह,ये तभी सार्थक बन पता है जब हम हमारी चाहत को अंतर आत्मा से चाहे और आपसी समझ से जिन्दगी के समंदर में आनेवाली मुश्किलों को मिलकर टकराए और प्यार की कश्ती किनारे तक पहुंचाए. अंत में यही कहूँगा की किसी से किसी का प्यार जुदा ना हो.
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