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आ लौट चले

हम हिन्दुस्तानी
हम हिन्दुस्तानी
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ऐ बंदूकधारी तू प्रेम कर ले
छोड़ आतंक की राहे
नफरत की मंजिले
आ अब लौट चले
हमारे संग जी ले

जंगल में पेड़ पत्ते भी कांप राहे
धमाको के साए में मासूम जीवन खो राहे
हरिभरी धरती यु लाल हो रही
प्रदूषित “राजनीति”से ही ऐसी बंदूके उठ रही

आजादी को कलंकित कर रहें कई नेताजी
बढती गरीबी,बेरोजगारी,भ्रष्टाचार के बोझ से
आज दबी है धरती माताजी
ऐसे समाज में कैसे रुकेंगे ये बंदूकधारी जी

हिंदुस्तान से ये तबाही मिटानी है
जातपात के नाम पर,राजनीति के ढोंग से
पृथकता के नारों से,समाज की अस्मिता बचानी है
आतंक की मंजिलो से जुदाई करानी है

नहीं छोडनी बन्दूको से गोलिया
हमें अपनानी है प्रेम प्यार की बोलिया
घर-परिवार बनाकर,उठानी है
शांति अमन की डोलिया
जिओ और जीने दो
बनो ऐसी हस्ती की
बन जाये प्रेरक कहानिया

सूचना-मैंने यह कविता देश में फैले नक्सलवाद के मद्देनजर आज से १२ साल पहले लिखी थी

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