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भारत गांवो में बसता है और जो गाँव अपने खेतो में अनाज पैदाकर सारे भारतवासियों का पेट भरते है,ऐसे हजारो गाँव आज भी बिना बिजली के अँधेरे में जीते है.जबकि संपन्न घराने और मुकेश अंबानी जैसे उद्योगपति का बिजली का बिल ७० लाख रुपये तक आता है और ऊपर से उन्हें ४८ हजार रुपये की छुट भी मिलती है.मेरी आपत्ति ये नहीं है की वे इतनी बिजली खर्च क्यों करते है,बल्कि ये पूछना चाहता हु की जब उन्हें इतनी बिजली खर्च करने का अधिकार है तो आम भारतीयों को इतनी तो बिजली मिले की वो अपनी जिन्दगी थोड़ी बहोत रौशन बना सके.खासकर वो गाँव जिन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी अँधेरे में गुजारी है.यही नहीं जिन गांवो में बिजली की लाइने है वहा इतनी कटौती होती है की वो मोटर पम्प से अपने खेतो को पानी तक नहीं दे सकते.हमारे देश में किसानो की हालत इतनी बदतर है की उन्हें जिन्दगी से हारकर मौत को गले लगाना पड़ता है.लेकिन किसान आत्महत्या आज सड़क दुर्घटनाओ की तरह आम बात हो गई है.अन्नपूर्णा की भूमिका निभानेवाले किसानो की ये हालत होगी तो आनेवाले दिनों में कृषि व्यवस्था इस कदर चौपट होगी की हर व्यक्ति को अपने लिए खुद अनाज पैदा करना पड़ेगा.
हम शहरी बिजली के बिना एक पल नहीं गुजार सकते,लेकिन गाँव में रहनेवाले उन लोगो के बारे में सोंचिये जो आज तक ये नहीं देख सके की बिजली क्या होती है.हमारे देश में ऐसे भी इलाके है जहा खुले आम बिजली की चोरी होती है और उन दबंग लोगो का बिजली विभाग के अधिकारी कुछ नहीं बिगाड़ सकते.दूसरी ओर सरकारी कार्यालयों और निजी कम्पनियों में बेहिसाब बिजली की फिजूल खर्ची की जाती है.बिजली की बचत के नारे खोखले ही साबित होते है.क्या बिजली की बचत मध्यम वर्ग और आम लोग ही करेंगे ? संपन्न घरानों की इस देश के प्रति क्या कोई भी जिम्मेदारी नहीं है ?बिजली के उपभोग में भारत ६ ठा बड़ा देश है और लगभग ६४ प्रतिशत देश विद्युतीकरण से युक्त है,जबकि ३५ प्रतिशत देश बिजली से वंचित है.यह वंचित क्षेत्र हमारे गाँव ही है.झारखण्ड,बिहार,उत्तर प्रदेश,ओडिशा,उत्तरांचल,मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों के १० प्रतिशत से ज्यादा गाँव आज भी अँधेरे में है.ऐसे भी गाँव होंगे जो मेरी इस सूची से छुट गए होंगे.एक ओर जहा बड़े पैमाने पर बिजली की बचत की आवश्यकता है तो वही दूसरी ओर उन गांवो में बिजली की लाइने भी पहुचाने के लिए कटिबद्धता की जरुरत है.मगर इस सवाल का जवाब आखिर कौन देगा की इस स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है ?सरकारे आती है,जाती है,लेकिन कोई इस अँधेरी जिन्दगी के लिए चिराग नहीं जलाता.वादे करनेवाले जनप्रतिनिधि चुनने के बाद उन गांवो की ओर गुजरते भी नहीं,जहा से कई नजरे इस इन्तजार में है की उनका भी आशिया रौशन होगा.खेतो में मोटर लगेगी तो खेतो में हर वक्त हरियाली होगी
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