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सूरज का गाँव

हम हिन्दुस्तानी
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सूरज चला था गाँव की ओर
याद आने लगी वही धुंधली भोर
सुबह और शाम,त्रिवेणी संगम के किनारे
छूती थंडी हवाए,रास्ते में हरीभरी पहाड़िया
वो घटाए .
सूरज चला था गाँव की ओर
जंगल में घूमते शेर,उछलते हिरण,नाचते मोर
और वो आम तोड़कर खाना,इमलिया चबाना
कहा खो गई वो बचपन की डोर
सूरज चला था गाँव की ओर
देखा गाँव तो चारो ओर
घटे वृक्ष, दौडती गाड़िया,धुएं का शोर
खेतो की मिटटी मुझसे पूछे
कहा गया था हमें यु छोड़
हम खोते जा रहे,मायानगरी की ओर
सूरज चला था गाँव की ओर
बचपन में सुना करते थे नेताजी के भाषण
गाँव देखा तो आज भी मिल रहा
रोटी,कपडा और मकान का आश्वासन
मजदूरी में खोते जा रहे कई बचपन
सूरज चला था गाँव की ओर
क्या लौटेगी वही भोर
चलना है हमें उसी हरियाली की ओर
थामनी है हमें खुशहाली की डोर

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