Menu
blogid : 368 postid : 25

प्यार कोई खेल नहीं

हम हिन्दुस्तानी
हम हिन्दुस्तानी
  • 44 Posts
  • 110 Comments

युवा अवस्था उस कच्चे घड़े की तरह होती है,जिसे जिस आकर में ढाला जाये उसी आकर में वह पूर्ण रूप धारण करता है.लेकिन सवाल ये है की उसे आकर देनेवाले कुम्हार की भूमिका कौन निभाएगा ? एक ओर माता-पिता अपने अपने कामो में इस कदर व्यस्त हो गए है की वे अपने बच्चो को उच्च शिक्षा के लिए दुसरे शहरो में भेजकर यह समझते है की उनकी जिम्मेदारी पूरी हो गयी है तो वही दूसरी ओर गुरु की भूमिका निभानेवाले शिक्षक सिर्फ अपनी नौकरी पूरी कर रहे है और कई मामलो में तो वह भी गुमराह करने में छात्रों से दो कदम आगे रह रहे है.आधुनिक माहौल का प्रभाव कहिये या हमारी फिल्मो का गहरा असर,रील लाइफ आज की रियल लाइफ में इस हद तक समां गई है की युवाओ का पहला कदम कालेज में होता है तो दूसरा कदम प्यार की ओर,पहले दोस्ती फिर प्यार,यही आज की युवा पीढ़ी का फैशन बन गया है.इसमें सिर्फ लडको को दोषी नहीं ठहराया जा सकता,लड़का हो या लड़की अगर उसका कोई बायफ्रेंड और गर्लफ्रेंड न हो तो इसे स्टेटस सिम्बल नहीं माना जाता.और तो और यह फैशन स्कूल के बच्चो तक पहुँच गया है
युवा अवस्था के इसी आकर्षण ने प्यार का ऐसा रूप ले लिया है की परिपक्वता के अभाव में यह स्थिति अब दीवानगी में तब्दील हो गयी है,जो की इस कदर जानलेवा बन गयी है की इन हालातो के चलते आंध्र प्रदेश में पिछले छह सालो से ऐसी घटनाये हो रही है जिन्हें देखकर रोंगटे खड़े हो जाते है.हाल ही में विशाखापत्तनम में एक १६ वर्षीय लड़के और १४ वर्षीय लड़की ने सिर्फ इसलिए आत्महत्या कर ली की उनके माता-पिता ने इन दोनों की शादी से इनकार कर दिया.मगर बाद में इस मौत का इतना सदमा पहुंचा की इन बच्चो का अंतिम संस्कार एक ही चिता पर किया गया.लेकिन इस मौत से ये सवाल उठता है की इस मासूमियत भरी उम्र को क्या प्यार के सही मायने पता थे ?इन बच्चो पर छत्र-छाया रखनेवाले माता-पिता और शिक्षको को पता है की प्यार याने क्या होता है ?क्योकि ये बच्चे जिस तरह के माहौल में पले बढे उसमे इन्हें दोस्ती-आकर्षण जैसी स्थिति ही प्यार लगने लगी.अगर कोई इस घटना के बारे में सुनेगा उनका यही कहना होगा की बच्चो की मौत के लिए परवरिश जिम्मेदार है,लेकिन जो ये बाते कहते है क्या वो अपने बच्चो की सही परवरिश कर पा रहे है ?जब कभी ऐसी घटनाये होती है मीडिया में और सभी वर्गो में चार दिन चर्चाये होती है और पांचवे दिन से हर कोई उसी आधुनिकता की अंधी दौड़ में दौड़ने लगता है.विशाखापत्तनम की इस घटना में तो मासूम प्यार ने अपनी जान दे दी,लेकिन उस युवा प्यार की बेलगाम रफ़्तार को कौन रोक पायेगा जो दीवानगी की हद इस कदर पार करता जा रहा है की प्यार का प्रस्ताव अस्वीकार होने पर जान लेने लगा है.क्या यही प्यार है………हैदराबाद की इंजीनियरिंग की छात्रा दिव्या को सिर्फ इसलिए मौत के घाट उतार दिया गया की उसकी दोस्ती दुसरे लड़के से हो गई.पहले शेखर और दिव्या में अच्छी दोस्ती हुआ करती थी जो बाद में प्यार में बदल गई.अमीर माता-पिता की अकेली संतान होने के कारण शेखर हैदराबाद में शानो शौकत की जिन्दगी जिया करता था और उसके अभिभावक नौकरी के खातिर दुसरे शहर में रह रहे थे.लेकिन शेखर को मिली ये आज़ादी और इस युवा अवस्था में मार्गदर्शन की कमी के चलते उसकी मानसिकता इतनी परिपक्व नहीं बन सकी की ये समझ सके की प्यार क्या होता है.महज युवा अवस्था का आकर्षण क्या पूरी जिन्दगी टिक सकता है ?इस सवाल का जवाब आपको उन जोड़ो से मिल सकता है,जो प्रेम विवाह के कुछ महीनो बाद ही तलाक के लिए अदालतों के चक्कर लगा रहे है.मै ये नहीं कहता की प्रेम विवाह पूरी तरह विफल होते है.आपसी समझ और परिपक्वता के साथ सफल होनेवाले जोड़ो की भी हमें कई मिसाले मिल जाएगी.मगर प्यार को ऐसी दीवानगी में नहीं धकेलना चाहिए की वो भविष्य को अँधेरी खाई में धकेल दे.
उच्च शिक्षा लेनेवाले युवाओ को अपने जोशीले कदम अपने उज्वल भविष्य की ओर बढ़ाने चाहिए,न की दोस्ती को प्यार का नाम देकर इसे एक खेल समझे.प्यार का अर्थ समझे बिना इसे एक फैशन की तरह अपनाना किसी घातक कदम से कम नहीं है.इसके नतीजे भी हम साफ देख सकते है.दिव्या की हत्या करनेवाला शेखर आज जेल की सलाखों के पीछे है.तो दिसम्बर२००८ में एसिड हमले में मारी गई स्वप्निका का हत्यारा पुलिस मुठभेड़ में मारा गया.२००४ में भी मनोहर नामक छात्र ने अपनी सहपाठी श्रीलक्ष्मी को क्लासरूम में मार डाला और आज जेल में सजा भुगत रहा है.इस तरह प्यार के लिए इनकार करने पर एसिड डालना या जान से ही मार देना पिछले कुछ दिनों से आंध्र प्रदेश में एक परंपरा बन गई है.युवाओ के लिए प्यार सिर्फ एक खेल बन गया है.कहा जाता है की आज के बच्चे कल देश का भविष्य बनेंगे,लेकिन जब ये बच्चे ही इस तरह गुमराह होने लगे तो ये समाज और ये देश किस दिशा में जायेगा ?ऐसे में अब ये जरुरी हो गया है की अभिभावक और शिक्षक इस युवा पीढ़ी को सही दिशा दिखने के लिए कड़े कदम उठाये.हद से ज्यादा आधुनिकता की अंधी दौड़ में भागने से खुद भी बचे और अपने बच्चो पर भी नियंत्रण रखे.यही नहीं युवा पीढ़ी भी अपनी जिम्मेदारिया समझे और प्यार को जिन्दगी की सही दिशा बतानेवाली राह बनाये,ना की उसे फैशन बनाकर दीवानगी की हदे पार कर दे .ये बात अच्छी तरह समझ ले की प्यार कोई खेल नहीं है और ना ही परदे पर ३ घंटे चलनेवाला फ़िल्मी ड्रामा.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh